आगामी 3 अगस्त 2020 को रक्षाबन्धन है। रक्षाबन्धन एक हिन्दू व जैन त्योहार है जो प्रतिवर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन धूम-धाम से मनाया जाता है। हर साल बहन अपने भाई की कलाई में विधि अनुसार राखी बांधती है और अपनी रक्षा का वचन मांगती है। भाई इस अवसर पर कुछ उपहार देकर भविष्य में संकट के समय सहायता देने का बचन देता है। रक्षाबन्धन आत्मीयता और स्नेह के बन्धन से रिश्तों को मज़बूती प्रदान करने का पर्व है। यही कारण है कि इस अवसर पर न केवल बहन भाई को ही अपितु अन्य सम्बन्धों में भी राखी बाँधने का प्रचलन है। गुरु-शिष्य आपस में रक्षासूत्र बाँधते हैं। लेकिन इस त्योहार को क्यूँ मानते हैं ये हम आप को बताते हैं :
- पुराणो में सर्वप्रथम पत्नियों ने अपने पति को राखी बांधी थी। पुराणो में वर्णन मिलता है कि देवताओं और राक्षसों में जब युद्ध शुरू हुआ तब राक्षसों का पक्ष विजयी होने लगा जिससे भगवान इन्द्र घबरा कर अपने गुरु बृहस्पति के पास गये तब वहां बैठी इन्द्र की पत्नी इंद्राणी ने उन्होंने रेशम का धागा मन्त्रों की शक्ति से पवित्र करके अपने पति के हाथ पर बाँध दिया। वह श्रावण पूर्णिमा का दिन था। मान्यता है कि इन्द्र इस लड़ाई में इसी धागे की मन्त्र शक्ति से ही विजयी हुए थे। उसी दिन से श्रावण पूर्णिमा के दिन यह धागा बाँधने की प्रथा चली आ रही है।
- वामनावतार नामक कथा के अनुसार जब राजा बलि ने स्वर्ग का राज्य छीनने का प्रयत्न किया देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। तब भगवान वामन अवतार लेकर राजा बलि से भिक्षा माँगने पहुँचे। बलि ने तीन पग भूमि दान कर दी। भगवान ने तीन पग में सारा आकाश पाताल और धरती नापकर राजा बलि को रसातल में भेज दिया। जब बाली रसातल में चला गया तब बलि ने तपस्या व भक्ति के बल से भगवान विष्णु को रात-दिन अपने सामने रहने का वचन ले लिया। इससे परेशान लक्ष्मी जी ने राजा बलि के पास जाकर उसे रक्षाबन्धन बांधकर अपना भाई बनाया और अपने पति को अपने साथ ले आयीं। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी।
- महाभारत में भी इस बात का उल्लेख है कि जब युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से पूछा कि मैं सभी संकटों को कैसे पार कर सकता हूँ तब भगवान कृष्ण ने उनकी तथा उनकी सेना की रक्षा के लिये राखी का त्योहार मनाने की सलाह दी थी।
- ऐतिहासिक विवरणो मे मिलता है कि राजपूत सैनिक जब लड़ाई पर जाते थे तब महिलाएँ उनके माथे पर तिलक लगाने के साथ साथ हाथ में रेशमी धागा इस विश्वास के साथ बाँधती थी कि यह धागा उन्हे विजय दिलाने के साथ ही उनकी रक्षा भी करेगा।
- भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में जन जागरण के लिए श्री रवीन्द्रनाथ नाथ टैगोर ने बंगाल विभाजन का विरोध करते समय रक्षाबन्धन त्यौहार को बंगाल निवासियों के पारस्परिक भाईचारे तथा एकता का प्रतीक बनाकर इस त्यौहार का राजनीतिक उपयोग आरम्भ किया।
इसको क्यों मानते है ये तो हमने बता दिया बस आप इस भाई बहन के प्यार भरे त्योहार को प्यार और खुशी के साथ मनाइए और एक दूसरे की कलाई पर रक्षा धागा बांध कर सबकी स्वस्थ व लम्बी ज़िन्दगी की दुआ मांगिए । दिल से किया हुआ संकल्प कभी खाली नहीं जाता ।
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