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वेदना

आप सुनकर पक गया हूं मैं,
मैं तो मैं था, तुम न हो सका,
काश न मिलती ये शोहरत,
शायद मैं, हम हो गया होता ।
इन्सान बनाया मुझे, ऐ खुदा जिगर पत्थर,
दिल रहम न हो सका,
दौलत की दौड़ में,
मैं भी शामिल,
काश इंसानियत
गढ़ लिया होता ।
मेहनत भी खुब की मैंने,
पसीने का न मोल कर सका,
बेदर्दी का आलम ये था,
काश, मैं दर्द ए रहम
बन गया होता ।
लालच बला है बुरी,
गरीबी को सिखला न सका,
नवाज़ गरीब है,
काश फंसाने को
पढ़ लिया होता ।
शिथिल खड़ा हूं मैं,
सहारा बन न सका,
काश बेसहारे का दर्द,
महसूस किया होता ।
तेरी धुप छांव में,
सुकून ढूंढता रहा,
वो तो मेरे अक्स में है,
काश तराना सुन लिया होता ।
उम्र के अंतिम पड़ाव में,
रुह का हो न सका,
सुपुर्द- ए- खाक, सच है,
काश, हकीकत से
वाकिफ हुआ होता ।
अब तो जिस्म रिक्त हैं,
जिंदगी से कह न सका,
रुक जा पल भर,
जनाजे में सो गया होता ।

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