कभी गुजरते थे दिन,
सोचने में
अब तो याद भी नहीं आता
कभी हम भी थे तेरे परवाने
अब रोशनी भी
उधार लेते हैं.
किसको फुर्सत है यहां
जो पिछला सोचे समझे
हम तो यूं ही अश्क
उधार लेते हैं.
याद नहीं हमें कि
फुर्सत से बैठे हो कभी
अब हम वक्त भी
उधार लेते हैं.
परछाइयों को देखकर
कभी याद आते थे तुम
अब तो हम अक्स भी
उधार लेते हैं.
कोई हंसता है तो मिलता है
सुकूँ दिल को
अब तो हम
मुस्कुराहट भी
उधार लेते हैं.
जीने की हसरत थी जब थे तुम
अब तो सांसे भी हम
उधार लेते हैं.
कोना कोना महकता था
फूलों सा कभी
अब तो मिट्टी भी
उधार लेते हैं.
हुआ पत्थर सा दिल इस कदर कि
अब सीने के जख्म भी
उधार लेते हैं.
pic credit: creativeart – www.freepik.com
अतिसुंदर
चन्द अलफाज —
देखा भी नहीं मैंने
तेरे इश्क में कहाँ जा रही थी
ऑचल में सम्भाले अपने दिल को
जज्बात उधार दिए जा रही थी
इल्म है मुझे इस बात का
कि तुझे मैंने यूँ अपनी धड़कनो में क्यू उलझाया
तुझे अपना सितम्गर बना खुद को ही तडपाया ।
बहुत ही उम्दा लिखा है आपने, मेरी ओर से भी कुबूल फरमाइए-
इश्क में तो कुछ भी उधार नहीं होता,
वारा जाता है दिल व्यापार नहीं होता,
धडकनों के रफ्तार से यकीं ना हो तुझको,
कर के देख अगर तुझको ऐतबार नहीं होता।
Nice lines
राशी जी,
इस बार आपने अपनी लाईन नहीं डाली, लगता है मेरी कृति ने इस बार आपको उस गहराई से नहीं छुआ जिस गहराई से और रचनाओं ने, मुझे आप की लाइनों का इंतजार रहेगा।
Thanks Neelesh ji
बेहतरीन