नाख़ुदा
हर ज़ख्म हँसकर कोई, जज़्ब करना सिखा दे।
रूठी हुई जिंदगी को कोई, हँसना सिखा दे।
अश्कों से सागर भर दिए, हमने कुछ इस तरह-
पलकों को बंद करके उन्हें, कोई थमना सिखा दे।
हाथों से निकलती है जिंदगी,मुट्ठी से रेत की तरह।
किसी तरह हाथ में कोई, उसे रखना सिखा दे।
तेरी दोस्ती के चाह की, शिद्दत है इस तरह-
कि भंवर से निकाल किश्ती कोई, साहिल से लगा दे।
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Bahut khub likha
अश्को से सागर भर दिए,हमने______
_______________,कोई थमना सिखा दे ।
I also want something to write-
हमको डूबो दिया नाखुदा ने मझधार में,
तैरते रहे बहुत मगर कोई किनारा ना मिला ।
सुना था कि टूटे तारे से मांगो तो आरजू पूरी होती है,ख़्वाहिश कोई हम भी करते मगर हमको ऐसा कोई तारा ना मिला
टूटे हुए तारों से नहीं वास्ता मेरा,
कि तेरे ख्वाहिशों से उनको रूबरू करूं
अपनी ख्वाहिशों में कभी चांद बांध ले,
रोशन करेगा वो तेरे साहिल का रास्ता।
wonderful poem
Thanks
सुन्दर वर्णन हाथों से निकलती जिंदगी, मुठ्ठी से रेत की तरह
आभार शिखा जी,
आपके बहुमूल्य विचार और इज्जत अफजाई के लिए, आगे भी आप के प्रतिक्रिया का आकांक्षी रहूंगा।
Very nice poem
धन्यवाद कविता जी!
आपकी प्रतिक्रिया लेखन का, अन्य कृतियों पर भी आप के विचार का आकांक्षी रहूंगा।
Thanks Riteshji for your valuable comment.
Awesome
Bahut bahut dhanyawad nupurji, hauslaafjai ke liye
Very nice
Bhut khub likha hai.. ati sunder
Bahut bahut dhanyawad dev bhai hauslaafjai ke liye