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नाख़ुदा

नाख़ुदा

 हर ज़ख्म हँसकर कोई, जज़्ब करना सिखा दे। 

 रूठी हुई जिंदगी को कोई, हँसना सिखा दे। 

 अश्कों से सागर भर दिए, हमने कुछ इस तरह-

 पलकों को बंद करके उन्हें, कोई थमना सिखा दे। 

 हाथों से निकलती है जिंदगी,मुट्ठी से रेत की तरह। 

 किसी तरह हाथ में कोई, उसे रखना सिखा दे। 

 तेरी दोस्ती के चाह की, शिद्दत है इस तरह-

 कि भंवर से निकाल किश्ती कोई, साहिल से लगा दे। 

 

pic credit: https://pixabay.com/

 

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This Post Has 14 Comments

  1. Rashi

    Bahut khub likha
    अश्को से सागर भर दिए,हमने______
    _______________,कोई थमना सिखा दे ।

    I also want something to write-
    हमको डूबो दिया नाखुदा ने मझधार में,
    तैरते रहे बहुत मगर कोई किनारा ना मिला ।
    सुना था कि टूटे तारे से मांगो तो आरजू पूरी होती है,ख़्वाहिश कोई हम भी करते मगर हमको ऐसा कोई तारा ना मिला

    1. Somit srivastava

      टूटे हुए तारों से नहीं वास्ता मेरा,
      कि तेरे ख्वाहिशों से उनको रूबरू करूं
      अपनी ख्वाहिशों में कभी चांद बांध ले,
      रोशन करेगा वो तेरे साहिल का रास्ता।

    2. Kavita

      wonderful poem

  2. Shikha

    सुन्दर वर्णन हाथों से निकलती जिंदगी, मुठ्ठी से रेत की तरह

    1. Somit srivastava

      आभार शिखा जी,
      आपके बहुमूल्य विचार और इज्जत अफजाई के लिए, आगे भी आप के प्रतिक्रिया का आकांक्षी रहूंगा।

  3. Kavita

    Very nice poem

    1. Somit srivastava

      धन्यवाद कविता जी!
      आपकी प्रतिक्रिया लेखन का, अन्य कृतियों पर भी आप के विचार का आकांक्षी रहूंगा।

  4. Nupur

    Awesome

    1. Somit srivastava

      Bahut bahut dhanyawad nupurji, hauslaafjai ke liye

  5. Ritesh

    Very nice

  6. Dev Anand Mishra

    Bhut khub likha hai.. ati sunder

    1. Somit srivastava

      Bahut bahut dhanyawad dev bhai hauslaafjai ke liye

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