दुलार भरी चंदा की लोरी,
रोज सुनाती मैया मोरी ।
देख चांद, इतराया मैं,
विचित्र खिलौना,पाया मैं ।
धरती के कण का ज्ञान तुम्हें,
कान्हा के हठ से प्यार तुम्हें ।
चंद्र खिलौना बन कान्हा का,
प्रतिबिंब अपना दिखलाते हो।
अभिलाषा थी वहीं पुरानी,
सानिध्य तुम्हारा पाने की।
बेदर्दी,विवेक,विज्ञान सहारे,
उस पार चांद के जाने की।
मां धरती के हो तुम रक्षक,
नित्य परिक्रमा करते हो।
मैया धरती के बन भैया,
तुम चंदा मामा कहलाते हो।
उम्मीद की ऊर्जा पास हमारे,
जरुरत तकनीकी सहारे की।
हौसलों ने अब पंख पसारे,
तैयारी गगन में विचरण की।
अदभुत रूप तुम्हारा देखा,
कद क्यों रोज बदलते हो।
राजा भैया तुम जननी के,
खुद आभा पर इठलाते हो।
साइकिल पर राकेट रखकर,
“विक्रम” ने ललकारा था।
परचम “सतीश” का दुनिया में,
“इसरो” स्वपन सजाया था।
उदर पुष्ट का हास्य बना,
सुन्दरता पर इतराते हो।
बुद्धि देव ने श्राप दिया तब,
“अमावस्या” कहलाते हो।
इसरो के वैज्ञानिक महिर,
मिशन चांद पर काम किया।
दूरी मापी, जुगत लगाई,
तब चंद्रयान का नाम दिया।
महिलाएं मिशन में आगे,
अब तुम क्यों सकुचाते हो।
कथा कहानी बहुत हुई अब,
रहस्य अपना बतलाते हो।
प्रक्षेपण जब हुआ यान का,
अंतरिक्ष हमारा डोल गया।
हमारा इसरो सबसे आगे,
शब्द “नासा” भी बोल गया।
विक्रम-लैंडर की आहट पर,
चंदा मामा क्यों शरमाते हो।
प्रज्ञान के हैं, कदम चांद पर,
तो, इतना क्यों अकुलाते हो।
Very nice
मित्र दिन प्रतिदिन आपकी लेखनी की धार तीव्र होती जा रही है । शुभकामनाएं
Nice bhaiya