कई बार मैंने सोचा इस प्यार का क्या करें
कि मुझे लूटा है दोस्त बनकर बार-बार
दिखा के ख्वाब तुम्हारा जिसने मजबूर कर दिया
रोका तो नाम लेना पड़ा मुझे तेरा हर बार
बड़ी दूर जा चुका था तेरा आशियां छोड़कर
बाहें पकड़कर मेरी मुझे खींच कर बेकरार
तेरी जुस्तजू की राह में बेदम जो हो गया
मेरे कदम को खींचा है तेरे पहलू ने बार-बार
सोचा था कि न सोचेंगे तेरे साथ को हम अब
कोशिश करी थी जितनी मैं रोया था ज़ार ज़ार
कहने को मेरे रास्ते बड़े ही अलग से थे
जब भी ज़मीं पर देखा पाया तेरे कदमों के निशान
लम्हों की बात करते हो गुजरते चले गए
गोया देखते रहे हम उनको भी तार-तार
हमने संजोया उनको कि मौसिकी बने
पर जज़्बात चल दिए कि लफ्जों के आर पार
आशिकी की जज़्ब में कई सूरतों को देखा
आई उन सूरतों में तेरी सूरत ही मेरे यार
अब क्या करूं कि मैं तेरा आंचल कहां से खोजूं
तलाशूँ कहां तुझे कि तेरा कोई राज़दां मिले
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बहुत सुंदर और भावनात्मक ??
धन्यवाद कविता जी, मेरी रचना पर अपनी प्रतिक्रिया देने पर।
Nice poem
शानदार प्रस्तुति बहुत ही मुखर रचना
Keya baat hai bhai.kuch khwaise rah gi thi jo aj v yade aati hai.awesom mitra
Thanks alokji for your valuable comment
Bahut hi sunder rachna ki hai.Waise to apki rachna ko padne ke baad kuch likhne ka munn nahi tha fir bhi चंद लाइनें पेश है- निशां बाकी हैं
खत्म तो हो गया सब कुछ
फिर यादों के निशां बाकी हैं
तुम तो भूल बैठे हर बात मेरी
पर मेरा भूल जाना अभी बाकी है
वैसे तो भूल जाती हूँ मैं छोटी छोटी बातें पल भर में
पर तुझे जेहन से मिटाने के लिए मेरा मर जाना बाकी है ।।
बहुत शानदार पंक्तियां हैं,
मेरा सौभाग्य है कि मेरी रचना आप को अच्छी लगती है और उसी के क्रम में आप की चंद लाइनें पढ़ने को मिलती हैं। आशा है इसी तरह आगे भी आप की लाइन पढ़ने को मिलती रहेगी।
बहुत खूब लिखा है
Thanks dear
मधुर स्मृतियां हैं डी एन भाई, आप का बहुत धन्यवाद।
प्यार की निशानियां
सुंदर रचना।