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मातृत्व- एक अहसास

मातृत्व- एक अहसास

 

वेद व्यास के अनुसार “पितुरप्यधिका माता गर्भधारण पोषणात् । अतोहि त्रिषु लोकेषु नास्ति मातृ समो गुरु:।”अर्थात् गर्भधारण करने और पालन पोषण करने के कारण माता का स्थान पिता से बढ़कर है इसलिये तीनो लोकों में माता के समान कोई गुरू नहीं है।

माँ एक नाम जो तप, त्याग समर्पण एवं बलिदान का जीवंत प्रतीक है, उसके आंचल में बचपन पोषित होता है, यौवन समृद्ध होता है। माँ शब्द नहीं बल्कि एक अहसास है। मातृत्व ही माँ का अलंकार है। मातृत्व में माँ समाहित है, माँ ही सर्वोपरि है। माँ से बड़ा कोई नहीं और कोई हो ही नहीं सकता। ममता कभी भेद नहीं करती, बेटे-बेटी में अंतर नहीं करती वह तो किसी भी विभाजन समय सीमा के परे होती है। अनंत प्यार सब पर लुटाती है इसलिये तो माँ को गर्भरूपी ममता की कोख मिली होती है।

 

माँ का रिश्ता कितना पावन, कितना सलोना,

स्नेह मातृत्व की इस देवी से महके घर का कोना-कोना

माँ थपकी है प्यार भरी लोरी का सरगम

आस्था की भोर नई, श्रद्धा का पूनम।

बांहो का झूला है, आंचल की छाया,

बारिश है आशीष की ममता की माया।

गिरते जब हम लड़खड़ाकर बनती माँ बैसाखी,

देकर हाथों का सहारा, हृदय से हमें लगती॥

 

 

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