श्रीकृष्ण का जन्म द्वापरयुग में मथुरा में हुआ था। कृष्ण वसुदेव और देवकी की 8वीं संतान थे। मथुरा के कारावास में उनका जन्म हुआ था और गोकुल में उनका लालन पालन हुआ था। यशोदा और नन्द उनके पालक माता पिता थे। उनका बचपन गोकुल में व्यतीत हुआ। श्रीकृष्ण ने अत्याचारी कंस का विनाश करने के लिए मथुरा में जन्म लिया। बाल्यावस्था में ही उन्होंने बड़े बड़े कार्य किये जो किसी सामान्य मनुष्य के लिए सम्भव नहीं थे। इसीलिए उन्हें ईश्वर का अवतार माना जाता है। इन्हीं भगवान विष्णु के आठवें अवतार श्रीकृष्ण के जन्मदिवस के रूप में जन्माष्टमी मनाते हैं। जन्माष्टमी भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि की मध्यरात्रि के रोहिणी नक्षत्र में मनाया जाता है। यह हिंदू धर्म की वैष्णव परंपरा से संबंधित है। वैष्णव सम्प्रदाय को मानने वाले लोग अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र को प्राथमिकता देते हैं। वैष्णव नियमों के अनुसार हिन्दू कैलेण्डर में जन्माष्टमी का दिन अष्टमी अथवा नवमी तिथि पर ही पड़ता है। जन्माष्टमी के दिन, श्री कृष्ण पूजा निशीथ समय पर की जाती है। वैदिक समय गणना के अनुसार निशीथ मध्यरात्रि का समय होता है।
इस वर्ष हिन्दू पंचांगों में 11 और 12 अगस्त को जन्माष्टमी है क्योंकि इस बार अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र दोनों एक ही साथ नहीं पड़ रहे। हिन्दू पंचांगों के अनुसार, भाद्रपद कृष्ण अष्टमी तिथि का प्रारंभ 11 अगस्त को सुबह 09:06 से हो रहा है, जो 12 अगस्त को सुबह 11:16 तक रहेगा। वहीं रोहिणी नक्षत्र का प्रारंभ 13 अगस्त को प्रातः 03:27 से हो रहा है और समापन सुबह 05:22 पर होगा। इसलिए जन्माष्टमी की पूजा के लिए इस बार पूजा का समय 12 अगस्त को रात्रि 12:05 से 12:48 तक का शुभ समय होगा किन्तु इस बार जन्माष्टमी रोहिणी नक्षत्र के बिना ही मनाई जाएगी। इस वर्ष मथुरा और द्वारिका में जन्माष्टमी 12 अगस्त के दिन मनाई जाएगी। वहीं बनारस, उज्जैन और जगन्नाथ पुरी में कृष्ण जन्मोत्सव एक दिन पहले 11 अगस्त को मनाई जाएगी। जगन्नाथ पुरी (उड़ीसा) सूर्य उपासक प्रदेश है, इसलिए यहां सूर्य की स्थिति को देखते हुए पुरी मंदिर में 11 अगस्त को जन्माष्टमी और 12 अगस्त को नंदोत्सव मनाया जाएगा। इस्कॉन (ISKON-International Society for Krishna Consciousness) जो कि ‘हरे कृष्ण’ भक्ति आन्दोलन का प्रणेता है और कृष्ण भक्ति के वैश्विक धार्मिक संस्थानों में एक है, ने भी 12 अगस्त को जन्माष्टमी पूजा का आयोजन किया है ।
जन्माष्टमी के उत्सव:
भगवान श्रीकृष्ण के जन्मस्थान मथुरा-वृंदावन में मुख्य रूप से रास लीला का आयोजन किया जाता है। जिसमें श्रीकृष्ण के प्रेम पक्ष को उजागर करने वाली नृत्य नाटिकाओं का मंचन किया जाता है । रास का अर्थ-सौंदर्य, भावना और लीला का अर्थ-नाटक या नृत्य है। अधिक व्यापक रूप से इसे ईश्वरीय प्रेम का नृत्य कह सकते हैं।
दही हांडी उत्सव मुख्यतया भारतीय राज्य महाराष्ट्र और गुजरात मे धूम-धाम से मनाया जाता है। दही यानी (curd) और हांडी का मतलब मिट्टी से बने पात्र जैसे मटका / मटकी को कहा जाता है। इस उत्सव में श्रीकृष्ण के बाल जीवन के दही माखन से जुड़ी घटनाओं का प्रतीकात्मक प्रदर्शन करने के लिए दही भरी मटकी को ऊंचाई पर बाँध दिया जाता है और नवयुवको की टोलियाँ उस मटकी को फोड़ कर दही पाने का प्रयास करती है जबकि युवतियों की टोली उन पर पानी की बौछार कर उनको रोकने का प्रयास करती है।