सुबह की हवा का आनंद लेते हुए, बगीचे के सुन्दर फूलों की ओर मुग्ध नज़रों से देख रही थीं कि माली बाबा हाथों में फूलों का एक बहुत ही सुंदर गुलदस्ता लिए आये और बोले, “बिटिया, आज सबेरे सबेरे इस तरफ कैसे आना हुआ? आप को देख कर आप के लिये यह गुलदस्ता ले आया। आपको ये फूल बहुत पसंद है, इसलिए। मालीबाबा के मुंह से यह सुन कर बहुत ही अच्छा लगा। मैं उनको अपने पास ही बैठने को बोली और उनके हाथों से गुलदस्ता ले लिया। गुलदस्ते को बाबा ने बड़े प्यार से बनाया था।
मैंने उनसे उनके परिवार के बारे पूछा, “बाबा घर में सब कैसे हैं? बेटा अभी कहाँ हैं? बहुत लम्बी सांस ले कर उन्होंने कहा,” बिटिया, कैसा बेटा? इतनी तकलीफ़ से उसे पढ़ाया। सोचा था कि एक दिन बेटा बड़ा होके कही अच्छी नौकरी करेगा और मेरी तकलीफ़ दूर करेगा। लेकिन हाय रे मेरी किस्मत! पढ़ लिख कर, नौकरी भी अच्छा पाया। मैं और मेरी पत्नी दोनों खूब खुश थे। ख्वाब देखने लगे कि अब हमारे दुःखों का अंत होगा लेकिन ऊपर वाले ने तो कुछ और ही सोच कर रखा था। एक दिन शाम को बेटा साथ मे एक लड़की को लेकर आया और अपने मां से बोला मां ये तुम्हारी बहु है। आज हमने मंदिर मे शादी कर ली है। हम क्या बोलते। हम सिर्फ अपने अरमानों को ढेर होते देखते रहे।
कुछ समय तक सब ठीक ही था लेकिन धीरे धीरे बेटा और बहु अपना रंग दिखाने लगे। एक दिन बेटे ने कहा, बाबूजी, सरला अपना बुटिक खोलना चाह रही है इसलिए जहां आप दोनों रहते हैं वो कमरा चाहिए।
मालीबाबा आगे बोले, बिटिया मैं तो सुनकर दंग रह गया। मैने बेटे से पूछा, शौर्य हम कहाँ रहेंगे? बड़े आराम से वो बोला, चिंता न करे, सरला ने एक वृधा आश्रम में आप दोनों केलिए बात कर ली है, आप लोग वहीं रहेंगे। फिर उसने एक काग़ज़ निकाला और मुझसे दस्तखत करवा लिया। जब मैंने पूछा ये क्या था तो वो मुस्कुराते हुए बोला कुछ नहीं बाबूजी ये घर के कागजात हैं आपने मेरे नाम कर दिये।
दूसरे दिन वे लोग हमें रास्ते में छोड़ गये। जब मैंने पूछा, शौर्य तुम तो किसी वृद्ध आश्रम के बारे बोले थे तो सरला बहू बोली, बाबूजी हमारे पास वहां रखने को पैसे कहा है। और वे चले गए।
ये दुःख शौर्य की मां सह नहीं सकी और दो दिन के बाद हृदयगति रुकने से वो भी मुझे छोड़ गई। तब से बिटिया मैं माली का काम करता हूँ और भगवान को कहता हूँ कि मैं अपने बाग का बागवान तो नहीं बन सका लेकिन इन बागों के देखरेख करने की मुझे ताकत दें जिससे मैं सुंदर खुशबूदार फूलों से आप सभी को खुशी दूं। मैं अवाक माली बाबा की बातें सुनती रही। कितना दर्द है जीवन में लेकिन मुख पर हमेशा एक मिठी सी मुस्कान। माली बाबा मुस्कुराते हुए बोले, बिटिया इन बागों के फूलों में कांटे भी है लेकिन वे कांटे मुझे कभी चुभते नहीं है या ये फूल पौधे मुझे चुभाते नहीं है कांटे शायद वे जानते हैं कि मैं उनका ख्याल रखता हूं। बिटिया इन में भी तो जान है और ये पौधे स्वार्थी नहीं हैं। मै भी गुलदस्ता को निहारते हुए मन में बोली इंसान के बागवान तो माली बाबा बन न सके लेकिन बागों ने अपने खुशबूदार फूलों से बाबा को श्रेष्ठ बागवान का सम्मान दिया है।
दिल को छू लेने वाली कहानी
Bahut sunder