हर व्यक्ति ने
संसार में
अगर खोजा है तो
वह है अपना अस्तित्व
प्रकाश की चकाचौंध में
तुम्हें अंधकार
अस्तित्वहीन लगता है
पर अंधकार के बिना
प्रकाश के अस्तित्व को
खोजो ।
क्या यह सम्भव है ?
किसी व्यक्ति के महत्त्व
को अस्तित्वहीन मत कहो
क्योंकि तुम अस्तित्वहीन हो
क्यों ?
क्या तुम पिता के बिना
पुत्र के अस्तित्व की कल्पना
कर सकते हो
ज़रा सोचो…
अपने आप में
महान अस्तित्व की कल्पना
करने वाले
तुम तो अस्तित्वहीन हो
अस्तित्व उसी का हो सकता है
जिसका अस्तित्व
परिलक्षित हो ।
Image by Khusen Rustamov from Pixabay
Sunder soch hai apki.
Kuch shabd-“लिखी गई अगर किताब कभी मेरे अस्तित्व पर नहीं जानती मैं की उसमें किन किन बातों का जिक्र होगा । पर तेरा जिक्र न ही उसमें, तो वो कहाँ हमारा अस्तित्व होगा ।।
बिंदास चाहत सोहा जी, क्या बात है?
कुछ ऐसा-
आओ हम मिल के दो जिस्म इक जान हो जाएं,
ना तू तू रहे ना मै मैं रहूं, इक नया जहान बसाएं।
Bahut गंभीर शीर्षक है ।
कुछ कहने कि कोशिश की है-
कब ऐसा चाहा मैंने
कि मुझमें तू और
तुझमे मैं खो जाएं
मैंने तो बस यही चाहा
कि मुझमें तू और
तुझमे मैं यूँ ही
हर बार
खोकर भी
मिल जाए ।।