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अकेला हूँ मैं

अकेला हूँ मैं

वो  मृगतृष्णा का मंज़र

वह जेहन में भरी आस

एक नितांत अनबुझी सी प्यास क्योंकि …

अकेला हूँ मैं ।

बोलता हूँ, सुनता हूँ,

टाल जाता हूँ

निरंतर जीतने की चाह में

हारता जा रहा हूँ

लुट रहा प्रतिपल, लुटा रहा हूँ मैं क्योंकि …

अकेला हूँ मैं ।

जिंदगी क्या है, जाना ही नहीं

मौत कैसी है, सोचा ही नहीं

मंजिल कहां है, क्या मालूम

सर्दी – बारिश – धूप क्या मालूम

गुजर रहा हूँ, गुजारे जा रहा हूँ क्योंकि…

अकेला हूँ मैं ।

 

pic credit:  https://www.pexels.com/

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This Post Has 3 Comments

  1. Ritesh

    Very nice

  2. Somit srivastava

    सहृदय धन्यवाद,
    रचना के हृदय को समझने के लिए।

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